BLOG DESIGNED BYअरुन शर्मा 'अनन्त'

रविवार, 8 मार्च 2015

नारी


पर्वत गोदी
बाबुल का आँगन
खेलती नदी

चीरती चली
रूढीयों का पर्वत
घायल नदी

धीर पर्वत
कभी चंचल नदी
नारी का चित्त

ढ़ो  रही हवा
कलियों का क्रंदन
जंगल मौन

प्रतीक्षा रत
उर्मिला ,यशोधरा
संघर्ष रत

बदली सदी
जीर्ण तटों  से बँधी
कराहे   नदी

आधी आबादी
सशक्त ,सुशिक्षित
होंगे शेष भी / नींव  सुदृढ़

आये न राम                                     
प्रतीक्षा में अहिल्या
रही  पाषाण

लांघे जो रेखा
हो जाती  रामायण
 साक्षी सदियाँ

नारी पुरुष
रथ के दो  पहिये
जीवन चले

चढ़ी फुनगी
चपल चारु लता
वृक्ष सहारा

दे दी आजादी
पग पायल बाँध
हाथ बेड़ियाँ

         





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